Anant Chaturdashi Vrat Katha 2020 | अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा

Anant Chaturdashi Vrat Katha

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया और यज्ञ मंडप का निर्माण बहुत ही सुंदर व अद्भुत रुप से किया गया. उस मंडप में जल की जगह स्थल तो स्थल की जगह जल की भ्रांति पैदा होती थी. इससे दुर्योधन एक स्थल को देखकर जल कुण्ड में जा गिरे. द्रौपदी ने यह देखकर उनका उपहास किया और कहा कि अंधे की संतान भी अंधी होती है. इस कटु वचन से दुर्योधन बहुत आहत हुए और इस अपमान का बदला लेने के लिए उसने युधिष्ठिर को द्युत अर्थात जुआ खेलने के लिए बुलाया और छल से जीतकर पांडवों को बारह वर्ष का वनवास दे दिया.

वन में रहते उन्हें अनेकों कष्टों को सहना पड़ा. एक दिन वन में भगवान कृष्ण युधिष्ठिर से मिलने आए. युधिष्ठिर ने उन्हें सब हाल बताया और इस विपदा से बाहर निकलने का मार्ग भी पूछा. इस पर भगवान कृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी का व्रत करने को कहा और कहा कि इसे करने से खोया हुआ राज्य भी मिल जाएगा. इस वार्तालाप के बाद श्रीकृष्ण जी युधिष्ठिर को एक कथा सुनाते है.

प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था उसकी एक कन्या थी जिसका नाम सुशीला था. जब कन्या बड़ी हुई तो ब्राह्मण ने उसका विवाह कौण्डिनय ऋषि से कर दिया. विवाह पश्चात कौण्डिनय ऋषि अपने आश्रम की ओर चल दिए. रास्ते में रात हो गई जिससे वह नदी के किनारे संध्या करने लगे. सुशीला के पूछने पर उन्होंने अनन्त व्रत का महत्व बता दिया. सुशीला ने वहीं व्रत का अनुष्ठान कर 14 गाँठों वाला डोरा अपने हाथ में बाँध लिया. फिर वह पति के पास आ गई. कौण्डिनय ऋषि ने सुशीला के हाथ में बँधे डोरे के बारे में पूछा तो सुशीला ने सारी बात बता दी. कौण्डिनय ऋषि सुशीला की बात से अप्रसन्न हो गए. उसके हाथ में बंधे डोरे को भी आग में डाल दिया. इससे अनन्त भगवान का अपमान हुआ जिससे परिणामस्वरुप कौण्डिनय ऋषि की सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई. सुशीला ने इसका कारण डोर का आग में जलाना बताया.

पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए ऋषि अनन्त भगवान की खोज में वन की ओर चले गए. वे भटकते-भटकते निराश होकर गिर पड़े और बेहोश हो गए. भगवान अनन्त ने उन्हें दर्शन देते हुए कहा कि मेरे अपमान के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई और विपत्तियाँ आई. लेकिन तुम्हारे पश्चाताप से मैं तुमसे अब प्रसन्न हूँ. अपने आश्रम में जाओ और 14 वर्षों तक विधि विधान से मेरा यह व्रत करो. इससे तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. कौण्डिनय ऋषि ने वैसा ही किया और उनके सभी कष्ट दूर हो गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति भी हुई.

श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनन्त भगवान का व्रत किया जिससे पाण्डवों को महाभारत के युद्ध में जीत मिली.

अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा का पाठ

भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त भगवान (कभी ना अन्त होने वाले सृष्टि के कर्त्ता विष्णु जी) का व्रत रखकर इसे अनन्त चतुर्दशी के रुप में मनाया जाता है.

Anant Chaturdashi Vrat Katha Date 2020

1st
September 2020
(Tuesday)

चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 31, 2020 को 08:48 AM
चतुर्दशी तिथि समाप्त – सितम्बर 01, 2020 को 09:38 AM

Benefits of Anant Chaturdashi Vrat 

अनन्त चतुर्दशी व्रत के लाभ |

अनन्त चतुर्दशी के दिन हल्दी से पीले करे हुए डोरे मैं 14 गाँठे लगाकर दाईं भुजा में बांधने से अनन्त फल प्राप्त होता है क्योंकि इन 14 गाँठों में चौदह लोक समाहित है जिनमें भगवान विष्णु बसते हैं.

Anant Chaturdashi Puja Mantra

अनन्त चतुर्दशी पूजा मंत्र

अनन्त सर्व नागानामधिप: सर्वकामद:।

सदा भूयात प्रसन्नोमे यक्तानामभयंकर:।।

Anant Chaturdashi Vrat Katha in Tamil/Telgu/Gujrati/Marathi/English

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